दिल्ली की सत्ता में हाल ही में आई रेखा सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए आम आदमी पार्टी (AAP) के खिलाफ दर्ज सात आपराधिक मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह फैसला न सिर्फ राजनीतिक रूप से अहम है बल्कि केंद्र-राज्य संबंधों में भी एक नई बहस की शुरुआत कर रहा है।
किस प्रकार के मामले होंगे रद्द?
सरकार जिन मुकदमों को रद्द करने जा रही है, उनमें AAP कार्यकर्ताओं और नेताओं के खिलाफ धरना-प्रदर्शन, सरकारी काम में बाधा पहुंचाने, बिना अनुमति के रैली आयोजित करने और शांति भंग करने जैसे आरोप शामिल हैं। ये मामले अक्सर भाजपा और उपराज्यपाल के कार्यालय के साथ टकराव के दौरान दर्ज हुए थे।
राजनीतिक संकेत क्या हैं?
इस फैसले को राजनीतिक विश्लेषक रेखा सरकार की “प्रशासनिक स्वतंत्रता की बहाली” के रूप में देख रहे हैं। जानकारों का मानना है कि यह कदम केंद्र सरकार द्वारा बार-बार उपराज्यपाल के माध्यम से दिल्ली सरकार की शक्तियों में हस्तक्षेप किए जाने के विरोध में उठाया गया साहसिक कदम है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
बीजेपी ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि “कानून सबके लिए बराबर होता है, और आपराधिक मामलों को राजनीतिक लाभ के लिए हटाना न्यायिक व्यवस्था का मज़ाक उड़ाने जैसा है।” वहीं, कांग्रेस ने भी इसे “लोकतंत्र की मर्यादा के खिलाफ” बताया है।
कानूनी पहलू
वकीलों का कहना है कि सरकार के पास यह अधिकार होता है कि वह जनहित में मुकदमों को वापस ले, लेकिन इसकी प्रक्रिया न्यायालय के अनुमोदन से ही पूरी होती है। दिल्ली हाईकोर्ट पहले भी कई मामलों में ऐसे फैसलों पर सख्ती दिखा चुकी है।
क्या होगा असर?
इस कदम से AAP कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा, वहीं दूसरी ओर केंद्र और उपराज्यपाल के साथ दिल्ली सरकार की रस्साकशी और बढ़ सकती है। यह मामला आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट तक भी जा सकता है यदि इसे संवैधानिक चुनौती दी जाती है।